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नवगछिया : धर्मसंघ पीठपरिषद् के तत्त्वावधान में शक्तिपीठ तेतरी दुर्गा स्थान में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह के तीसरे दिन प्रवचन करते हुए आचार्य डॉ भारतभूषण जी महाराज ने कहा कि हमारा धर्म वर्ण और आश्रम पर आधारित है। पहला ब्रह्मचर्य आश्रम है जिसमें वैदिक परम्पराप्राप्त आचार्य का अनुगत होकर वेदादि शास्त्रों का अध्ययन करना, अधीत भगवत्तत्त्व का चिंतन करना और पौरुष का रक्षण करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि बिना ब्रह्मचर्य व्रत के ब्रह्मविद्या न तो प्राप्त हो सकती है और न ही टिक सकती है। कठोर शारीरिक श्रम, सेवा, स्वाध्याय और गुरु की शरण में रहकर वेदान्तवेद्य ब्रह्म का चिंतन ही ब्रह्मचर्य व्रत को अक्षुण्ण रख सकता है। आचार्य ने वेदनापूर्वक कहा कि आज की शिक्षा और जीविका व्यवस्था ही ब्रह्मचर्य का क्षरण सिखा रही है और स्वच्छन्द जीवन के नाम पर पशु-पक्षियों से भी गर्हित मनुष्यों का निर्माण कर रही है। उन्होंने कहा कि सफल गृहस्थ जीवन के लिए भी आरंभ के बाईस वर्षों तक कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए। दुनिया का कोई भी कार्य असंभव नहीं रह जाता है। आचार्य ने कहा कि भगवान ने पहला अवतार सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार के रूप में लेकर नैष्ठिक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया।सनकादि, नारद, नर-नारायण आदि ब्रह्मचारी ऋषि हैं तो भगवान परशुराम, पितामह भीष्म आदि लोक विश्रुत ब्रह्मचारी हैं। उन्होंने कहा कि वैदिक रीति से विवाह कर गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना भी एक प्रकार का ब्रह्मचर्य है। भगवान श्रीराम एकपत्नी व्रत का पालन करते हैं और जगदंबा सीता पतिव्रता हैं। यही शास्त्रों की आदर्श शिक्षा है। इस अवसर पर प्रयागराज से पधारे पं संजय द्विवेदी के नेतृत्व में विद्वानों ने सर्वतोभद्र मंडल पूजन, रुद्राभिषेक, मूल पाठ, जप आदि संपन्न किया। चित्रकूट से आई संगीत मंडली ने भजन प्रस्तुत किया। आयोजन समिति के अध्यक्ष रमाकांत राय, अरुण राय, टुनटुन मास्टर, महंत जयप्रकाश झा, गोपाल कुंवर, विनय राय, सुनील राय, मिथिलेश कुंवर समेत तमाम यजमानों ने व्यासपीठ पूजन किया।

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