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विनय गुप्ता। नवगछिया बाजार के एक सम्मानित व्यवसायी। स्वभाव इतना मृदु कि उनकी ऊंची आवाज़ भी सामान्य बातचीत से धीमी प्रतीत होती थी। मेहनत के बल पर उन्होंने अपने प्रतिष्ठान को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ सामाजिक दायित्वों को भी उन्होंने बखूबी निभाया। बाजार में किसी भी व्यक्ति से पूछ लीजिए—क्या विनय से आपका कोई विवाद रहा? उत्तर मिलेगा—“नहीं।”

क्या ही विवाद करता वो व्यक्ति, जिसकी दिनचर्या ही सीमित और संयमित हो। सुबह उठकर नहाना, पूजा-पाठ करना, और घर से चंद कदम दूर स्थित दुकान पर बैठ जाना। दिनभर व्यापार करना, बीच-बीच में बच्चों को समय देना और रात को दुकान समेटकर घर लौट जाना—यही उसकी दिनचर्या थी।

काश, 4 मई रविवार को भी यह क्रम टूटा न होता! केवल 5-10 मिनट की देरी और शायद विनय अपने घर पहुंच चुका होता। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। रात लगभग सवा नौ बजे, एक सिरफिरे अपराधी ने उसे गोलियों से छलनी कर दिया। कनपटी पर कट्टे जैसे दिखने वाले हथियार से निकली गोली सीधे अंदर और लहू बाहर। इतनी निर्ममता कि बचने की कोई संभावना ही न रही।

एक झटके में हंसता-खेलता परिवार उजड़ गया। घर में रुदन ऐसा कि सुनने वालों की आंखें नम हो जाएं—“रे भाय, उठ ना रे भाय, बोल ना रे भाय…”। एक गोद ली हुई संतान और दो जैविक बच्चे—तीन मासूम बच्चे अनाथ हो गए। पत्नी की पीड़ा… शब्दों से परे। कितना भी सम्पन्न परिवार क्यों न हो, पति के बिना जीवन की कल्पना ही भयावह होती है।

शारदा विद्या मंदिर, गजाधर भगत रोड स्थित स्कूल—शायद वहीं मेरी बहन या भाई के सहपाठी रहे होंगे विनय भैया। तभी से उन्हें “विनय भैया” कहकर मासूमियत में कई बार सामान पर छूट भी ले लिया करता था। वो बचपन का स्नेह उन्होंने कभी कम नहीं होने दिया। आज भी जब नवगछिया जाता, कुछ रुपये कम देता, तो वे बस मुस्कराकर कहते, “जाओ न…”

घटना वाले दिन मम्मी की फोन पर उनकी पत्नी से बात हुई थी। रोज की तरह हालचाल लिया गया था। अब मम्मी असमंजस में हैं—कैसे साहस करें उनके हालचाल पूछने की। मैं स्वयं दिल्ली में हूं, और सोमवार को मन बिल्कुल अशांत रहा। जब मेरी हालत ऐसी है, तो नवगछिया में उनके मोहल्ले, हडिया पट्टी में कैसा मातम पसरा होगा!

पुलिस और प्रशासन पर कुछ कहना अब शेष नहीं। अफसोस है कि वह अपराधी हमारे बीच से होकर चला गया और कोई कुछ कर नहीं सका। नवगछिया की पुलिसिंग हमेशा से ढुलमुल रही है। क्या अब वक्त नहीं आ गया है कि आम लोग व्यवस्था के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करें? नवगछिया थाना, एसडीपीओ और एसपी से बार-बार आग्रह करने के बजाय एक जनांदोलन खड़ा करना होगा। अब भी अगर नवगछिया के व्यापारी, नागरिक और बाजारवासी नहीं जागे, तो फिर कब?

नवाज देवबंदी की ये पंक्तियां आज बहुत कुछ कह जाती हैं—

“जलते घर को देखने वालों, फूस का छप्पर आपका है,
आपके पीछे तेज़ हवा है, आगे मुक़द्दर आपका है,
उसके क़त्ल पे मैं भी चुप था, मेरा नंबर अब आया,
मेरे क़त्ल पे आप भी चुप हैं, अगला नंबर आपका है।”

— निलेश कुमार भगत
सीनियर जर्नलिस्ट, दिल्ली
रहवासी, नवगछिया बाजार

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