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कृष्ण जन्म कि कथा, झांकी, समुद्र मंथन, सूर्य वंश, श्रीराम कथा का विस्तृत वर्णन

नवगछिया । बिहपुर प्रखंड के नरकटिया में चल रहे सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत महापुराण के पंचम दिवस पर भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य बाल लीला का वर्णन किया। कथाब्यास मांगन बाबा ने कहा कि भागवत महापुराण में भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण एवं बाल लीला विलक्षण हैं। प्रभु भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिए। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव से हुआ, जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा ‘अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं। आप मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना आपको पार ले जाने मदद करेगा.


उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए। अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा जन्म हुआ है। उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।’ इस तरह जन्म कि कथा एवं झांकी प्रस्तुत कि गयी, इससे पूर्व गजेंद्र मोक्ष, समुद्र मंथन, सूर्य वंश का वर्णन, भगवान श्रीराम कथा कि विस्तृत वर्णन किया गया। आयोजक सवीता देवी, दीपक राय, धीरज राय, नीरज राय आदि ने सहयोग किया।

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