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नवगछिया : वट सावित्री व्रत, मिथिलांचल की सांस्कृतिक आत्मा में रचा-बसा एक ऐसा पर्व है, जो नारी शक्ति, प्रेम, और समर्पण की अनुपम मिसाल प्रस्तुत करता है। इस दिन सुहागन स्त्रियाँ वटवृक्ष की पूजा कर अपने पति की दीर्घायु और सुखद जीवन की कामना करती हैं।

एक श्रद्धालु महिला ने भावुक होते हुए बताया, “मैं लगातार 27 वर्षों से वट सावित्री पूजन करती आ रही हूं। पहले अपनी स्नेहमयी सासू माँ के साथ वटवृक्ष के नीचे जाती थी। आज भी उन्हीं की सीख और परंपरा को निभाते हुए मैं और मेरी देवरानी मिलकर पूजा करते हैं और उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करती हैं।”

इस वर्ष का व्रत और भी भावनात्मक बन गया जब उन्होंने अपने पति के साथ प्रेम और परंपरा का अद्भुत दृश्य साझा किया। उन्होंने कहा, “जब मैं अपने प्राणप्रिय पति को पंखा झेल रही थी, तभी उन्होंने मेरे हाथ से पंखा लेकर मुझे भी पंखा झेलना शुरू किया और प्रेमपूर्वक बोले — ‘जय वट सावित्री, जय वट सत्यवान!’ इसके बाद उन्होंने मेरा हाथ थाम सासू माँ की तस्वीर के सामने मुझे संग लेकर नमन किया।”

यह क्षण न सिर्फ एक पति-पत्नी के बीच प्रेम का प्रतीक था, बल्कि यह पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा को आत्मसात करने और आगे बढ़ाने की प्रेरणादायक कहानी भी है।

मिथिलांचल की मिट्टी में रची-बसी इस भावना ने एक बार फिर साबित किया कि परंपराएँ तभी जीवंत रहती हैं जब उन्हें प्रेम, सम्मान और आत्मीयता के साथ निभाया जाए।

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