


भागलपुर ज़िले के सबौर प्रखंड के मसाढू गाँव में एक बार फिर गंगा के कहर का साया मंडरा रहा है। पिछले वर्ष जहाँ गंगा ने एक के बाद एक 45 से 50 मकानों को निगल लिया था, वही इलाका इस बार भी पूरी तरह असुरक्षित है क्योंकि अब तक वहाँ कोई भी कटावरोधी कार्य शुरू नहीं हुआ है।
बारिश का मौसम नज़दीक आते ही गाँव के लोग दहशत में हैं। जिन लोगों ने अपने घर, ज़मीन और संपत्ति गँवाई थी, उन्हें अब तक केवल मुआवजा की स्वीकृति पत्र मिला है, लेकिन वास्तविक मुआवजा नहीं। विभागीय लापरवाही और प्रशासनिक उदासीनता ने इन लोगों को दोहरी मार दी है।
गाँव के लोगों का कहना है कि जल संसाधन विभाग ने मसाढू को फिर से नजरअंदाज कर दिया है। कार्य दूसरे गाँव में शुरू कर दिया गया है, लेकिन मसाढू के पीड़ित अब भी इंतजार कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बार-बार कहते हैं कि आपदा पीड़ितों का सबसे पहला हक़ है राज्य के खजाने पर, लेकिन मसाढू के हालात इस दावे को झूठा साबित कर रहे हैं। 42 लोगों को मुआवजा का स्वीकृति पत्र मिलने के बावजूद अब तक एक रुपया भी नहीं मिला है।
गाँव वालों का सवाल है — क्या उन्हें आपदा पीड़ित नहीं माना जा रहा? क्यों जनप्रतिनिधि चुप हैं? क्या सरकार व विभाग तब जागेगा जब गंगा दोबारा इस गाँव को निगल जाएगी?

जिलाधिकारी डॉ. नवल किशोर चौधरी ने बताया कि मसाढू के लिए बैठक हुई है और जल्द ही कार्य शुरू होगा, लेकिन पीड़ितों का कहना है कि अब उन्हें आश्वासन नहीं, ठोस कार्य चाहिए।