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भागलपुर : सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रमुख पर्व वट सावित्री व्रत और सोमवती अमावस्या इस वर्ष 26 मई को मनाई जाएगी। यह व्रत नारी शक्ति के त्याग, साहस और समर्पण का प्रतीक है, जिसमें सावित्री ने यमराज से अपने अल्पायु पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए। यह जानकारी देते हुए आचार्य अजय शुक्ल ने कहा कि यह व्रत हर वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है।

इस वर्ष अमावस्या तिथि 26 मई को दिन में 12 बजकर 11 मिनट से प्रारंभ होकर 27 मई की सुबह 8 बजकर 23 मिनट तक रहेगी। इस दिन शोभन और अतिगण्ड योग का संयोग बन रहा है, जो व्रत और पूजन को विशेष फलदायक बनाता है। व्रत के दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:54 से दोपहर 12:42 तक रहेगा।

आचार्य शुक्ल ने बताया कि वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष (बरगद) की पूजा की जाती है और उसके चारों ओर 108 बार कलावा लपेटा जाता है। इस दिन स्नान, दान, पितरों की पूजा और धन प्राप्ति के लिए विशेष पूजन किया जाता है।

व्रत की कथा का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि राजर्षि अश्वपति की एकमात्र पुत्री सावित्री ने वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपना जीवनसाथी चुना, जिसे नारद जी ने अल्पायु बताया। लेकिन सावित्री अपने निश्चय पर अडिग रहीं और पति के साथ वन में रहकर सेवा करने लगीं। जब यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए, तब सावित्री उनके पीछे-पीछे चलने लगीं। अपने अद्वितीय साहस और समर्पण से उन्होंने यमराज को तीन वरदान मांगने के लिए विवश कर दिया—सत्यवान के माता-पिता के लिए ज्योति, राजपाट की पुनः प्राप्ति और स्वयं के लिए सौ पुत्र। इन वरों को पूरा करने के लिए यमराज को सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े और वह दीर्घायु हो गए।

आचार्य शुक्ल ने कहा कि यह व्रत नारी शक्ति, दृढ़ निश्चय और त्याग की अमर मिसाल है, जो आज भी प्रेरणा देता है।

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