


भागलपुर का बहुप्रतीक्षित सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल करोड़ों की लागत से बनकर तो तैयार हो चुका है, लेकिन अब तक यह आम जनता को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं देने में असफल रहा है। केंद्र सरकार ने इस योजना को 2018 में स्वीकृति दी थी और उस समय के स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने 200 करोड़ की लागत वाले इस अस्पताल का उद्घाटन भी किया था।
निर्माण कार्य में लंबे समय तक विलंब हुआ, जिसको लेकर कई बार सरकारों ने अल्टीमेटम दिया और कार्रवाई की बात भी हुई। अब जबकि अस्पताल की इमारत पूरी तरह से बनकर खड़ी है, तो भी सुविधाओं का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच पाया है।
पूर्वी बिहार के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल मायागंज में पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली की चर्चा आम है। ऐसे में सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल को लेकर जनता के बीच उम्मीद जगी थी, लेकिन तीन साल बीतने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है।

भागलपुर के सांसद अजय मंडल ने अस्पताल को चालू करवाने को लेकर कई बार आवाज उठाई, लेकिन अस्पताल शुरू होने की दिशा में ठोस प्रगति नहीं हो पाई है।
हाल ही में अस्पताल अधीक्षक डॉ. अभिलेश कुमार ने सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का निरीक्षण किया और व्यवस्थाओं का जायजा लिया। उन्होंने मीडिया को बताया कि यह अस्पताल भागलपुर वासियों के लिए एक वरदान सिद्ध होगा और इसे जल्द चालू करने की पूरी कोशिश की जा रही है। उन्होंने बताया कि कुछ आवश्यक आधुनिक उपकरणों की कमी के कारण सेवाएं अब तक शुरू नहीं हो पाई हैं, लेकिन जून माह में अस्पताल को सुचारू रूप से चालू कर दिया जाएगा।
उपाधीक्षक डॉ. रमेश कुमार ने बताया कि अस्पताल को 2018 में मंजूरी मिली थी, लेकिन 2020 में कोरोना महामारी के चलते कार्य में बाधा आई। उन्होंने बताया कि अस्पताल बनने के बाद सभी उपकरणों की बारीकी से जांच की गई है और अब फाइनल असेसमेंट के बाद मशीनें इंस्टॉल हो चुकी हैं। हालांकि अभी कुछ उपकरणों की आपूर्ति बाकी है, जिन्हें जल्द ही मंगवाया जाएगा।
उन्होंने यह भी बताया कि अस्पताल में 353 डॉक्टरों की नियुक्ति प्रस्तावित थी, लेकिन अब तक सिर्फ 10 डॉक्टरों की ही नियुक्ति हो सकी है। इसके बावजूद मौजूदा संसाधनों और डॉक्टरों की मदद से जल्द ही इनडोर और न्यूरोलॉजी सेवाएं शुरू कर दी जाएंगी।
