


भागलपुर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के उद्यान विभाग (फल एवं फल प्रौद्योगिकी) द्वारा आयोजित 11वीं आम विविधता प्रदर्शनी में आम प्रेमियों को एक अनोखा अनुभव मिला। इस विशेष कार्यक्रम में आम की कुल 252 विभिन्न किस्मों को न केवल प्रदर्शित किया गया, बल्कि आगंतुकों को उन्हें चखने का भी अवसर दिया गया।
इस कार्यक्रम का उद्घाटन मुंगेर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) संजय कुमार ने किया, जबकि अध्यक्षता बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह ने की। प्रदर्शनी में दशहरी, लंगड़ा, चौसा, अम्रपाली, बंबइया, मल्लिका जैसी पारंपरिक किस्मों के साथ-साथ कई नई अनुसंधान आधारित हाइब्रिड किस्में भी प्रदर्शित की गईं।

उद्यान विभाग की अध्यक्ष डॉ. रूबी रानी ने बताया कि इस प्रदर्शनी का उद्देश्य केवल स्वाद का आनंद लेना नहीं है, बल्कि आम की विविधता को संरक्षित करना, पारंपरिक किस्मों को बचाना और आधुनिक अनुसंधानों को आम लोगों तक पहुँचाना है। उन्होंने यह भी कहा कि हर आम की खुशबू, रंग और स्वाद ने आगंतुकों को आश्चर्यचकित कर दिया।
मुंगेर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. संजय कुमार ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए इसे “आम का ज्ञान और स्वाद मेला” कहा। उन्होंने कहा कि इस तरह की पहल से कृषि के प्रति युवाओं और किसानों की रुचि बढ़ रही है और फलों की विविधता को एक नई ऊर्जा मिल रही है।
प्रदर्शनी में मकारखंड, स्वर्ण रेखा, बीज मुंबई, भारत भोग, कृष्ण भोग, सावित्री भोग, पुलिस गोवा, किंग फोन, बानराज, मंडपम, सिंदुरिया, जरदालु जैसी किस्मों ने लोगों का ध्यान खींचा। वहीं मोती वन आम, मोदी टू आम, गुलाब खास, दूधिया मालदा, साबरी, और किंग फोन जैसी किस्में चर्चा का विषय रहीं।

इस बार की प्रदर्शनी की सबसे बड़ी उपलब्धि रही “सिंधु” नामक बिना गुठली वाला आम, जिसे विश्वविद्यालय ने विकसित किया है। कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह ने बताया कि यह आम स्वाद में बेहतरीन है और इसकी गुठली इतनी छोटी है कि इसे पूरी तरह खाया जा सकता है, यानी पल्प ही पल्प।
उन्होंने यह भी जानकारी दी कि सबौर का आम से रिश्ता 1951 से है और यहाँ “महमूद बहार” और “प्रभा शंकर” जैसी किस्में पहले ही तैयार की जा चुकी हैं। वर्तमान में विश्वविद्यालय में कुल 254 किस्मों के आम संरक्षित हैं। विश्वविद्यालय अब ऐसे आमों पर भी शोध कर रहा है जो साल में कई बार फल दे सकें। भविष्य में दिसंबर महीने में भी ताजे आम उपलब्ध कराने की योजना है।
बिहार वर्तमान में भारत में आम उत्पादन में तीसरे स्थान पर है और औसतन 9.5 टन प्रति हेक्टेयर का उत्पादन करता है।
