


भागलपुर। विश्व कछुआ दिवस के अवसर पर भागलपुर वन प्रमंडल द्वारा एक सराहनीय पहल करते हुए 71 सॉफ्ट सेल कछुओं को उनके प्राकृतिक आवास में सुरक्षित रूप से छोड़ दिया गया। इस कार्यक्रम का नेतृत्व वन प्रमंडल पदाधिकारी सुश्री श्वेता कुमारी ने किया। उन्होंने बताया कि कछुए धरती के सबसे पुराने जीवों में गिने जाते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
श्वेता कुमारी ने बताया कि कछुए प्रदूषण के सूचक जीव होते हैं। इनका अस्तित्व लगभग 22 करोड़ वर्षों से बना हुआ है। कुछ कछुए 100 वर्ष से अधिक आयु तक जीवित रहते हैं। दुनिया का सबसे दीर्घायु कछुआ 190 वर्षों से अधिक जीवित रहा है। कछुए का खोल उसकी हड्डियों का हिस्सा होता है जिसे वह जीवनभर नहीं छोड़ सकता। कुछ प्रजातियां पानी के भीतर छह घंटे तक सांस रोके रख सकती हैं।
उन्होंने कहा कि कछुए शाकाहारी, मांसाहारी या सर्वाहारी हो सकते हैं, यह उनकी प्रजाति पर निर्भर करता है। समुद्री कछुए प्रजनन काल में हजारों किलोमीटर की यात्रा कर सकते हैं और मादा कछुए अपने पीछे के पैरों से मिट्टी खोदकर अंडे देती हैं। इनकी धीमी गति भी इनकी पहचान है, जो औसतन 0.3 किमी प्रति घंटे होती है। कुछ कछुए अतिरिक्त नमक आंखों के जरिए निकालते हैं जिससे ऐसा लगता है कि वे रो रहे हों।

विश्वभर में कछुओं की लगभग 360 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से कई विलुप्ति की कगार पर हैं। कछुओं के संरक्षण और उनके महत्व को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से वर्ष 2000 में अमेरिकी संस्था ‘अमेरिकन टॉर्टॉयज रेस्क्यू’ ने विश्व कछुआ दिवस की शुरुआत की थी। यह संस्था कछुओं और अन्य सरीसृपों के संरक्षण और बचाव के लिए कार्य करती है।
इस अवसर पर सुश्री श्वेता कुमारी ने अपील की कि कछुओं और उनके प्राकृतिक आवास की रक्षा केवल सरकारी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हम सभी की साझा जिम्मेदारी है। हमें अवैध शिकार, व्यापार और पर्यावरणीय खतरों से इन्हें बचाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
कार्यक्रम में पशु चिकित्सा पदाधिकारी संजीत कुमार, वन क्षेत्र पदाधिकारी रूपम कुमार सिंह, वनपाल दिनेश कुमार सिंह, वनरक्षी अमरेश कुमार, रूपेश कुमार सिंह, कमलेश कमल, मोहम्मद मुमताज, मोहम्मद अख्तर आलम, डॉल्फिन मित्र योगेन्द्र, महेन्द्र, संतोष, नागो, अर्जुन, विष्णु, गोरे, राजेंद्र समेत अनेक लोग मौजूद रहे। सभी ने मिलकर कछुओं को सुरक्षित रूप से उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ा और संरक्षण का संदेश दिया।
