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ऋषव मिश्रा कृष्णा “मुख्य संपादक” जीएस न्यूज

आदिकाल से मानवीय सभ्यता में सांपों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है. अंग क्षेत्र की बात करें तो यहां की लोकगाथा बिहुला विषहरी का मुख्य फोकस सर्प पूजा है. यहां की लोक कला, लोक संस्कृति, लोकगीतों में सांप रचे बसे हैं. प्रायः गांवों की बात करें तो वहां कहीं न कहीं बिषहरी मंदिर जरूर है. विगत 15 वर्षों में इलाके में सांपों की दुनियां में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है. अब दूर – दराज के प्रांतों में पाए जाने वाले सांप विषधर रसेल वाइपर यहां देखे जा रहे हैं तो देशी सांप विलुप्तप्राय हो गए हैं. अब यहां की पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अच्छा साबित होगा या बुरा, यह समय बताएगा.

नवगछिया अनुमंडल सहित गंगा और कोसी के आस – पास के इलाके के पारिस्थिकी तंत्र में इनदिनों बड़ा बदलाव देखा जा रहा है. खास कर सांपों की बात करें तो पूर्व में बहुतायत देखे जाने वाले देशी प्रजाति के सांप गेहूवन, कोबरा, धामन, करैत, सांकड़ा आज कल विलुप्तप्राय सांपों की श्रेणी में आ रहे हैं तो दूसरी तरफ अब रसेल वाइपर नामक सांपों की संख्या में इनदिनों बेतहाशा वृद्धि हुई है. सिर्फ एक माह में नवगछिया अनुमंडल क्षेत्र के विभिन्न जगहों से 10 सांपों को वन विभाग की टीम द्वारा पकड़ा गया है. जबकि कई जगहों पर रसेल वाइपर नामक सांप को देखे जाने की सूचना है और कुछ जगहों पर तो लोगों ने उक्त सांप को मार भी दिया. इलाके के लिए रसेल वाइपर सांप बिल्कुल नया है. वर्ष 2008 के बाद इस प्रजाति के सांप को कुछ सालों तक इक्के दुक्के जगहों पर ही देखा जा रहा था लेकिन वर्ष 2016 के बाद से इस प्रजाति के सांपों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. अनभिज्ञता के कारण जब कहीं यह सांप दिखता है तो लोगों को लगता है कि उक्त सांप अजगर का बच्चा है और लोग इसके साथ सहज व्यवहार करने लगते हैं. बच्चे – बड़े इस सांप के काफी करीब चले जाते हैं जो बेहद खतरनाक है.

भारत का सबसे जहरीला सांप है रसल वाइपर

रसल वाइपर को भारत का सबसे जहरीला सांप माना जाता है. यह बात भी सामने आयी है कि भारत में सर्प दंश से होने वाली सबसे अधिक मौतें रसेल वाइपर के काटने से हुई है. इस सांप में होमोटोक्सिन नामक जहर पाया जाता है जो इंसान के शरीर में मिलते ही रक्त को थक्का बना देता है और मल्टीपल ऑर्गेन फैल्योर से पीड़ित की मौत हो जाती है. कहा जाता है कि अमूमन इस सांप का जहर दस मिनट के अंदर की असर करने लगता है. ससमय सही प्रथामिक उपचार और समुचित इलाज की व्यवास्था हो तो भी बचने की संभावना आंशिक रहती है.

कैसे करें रसेल वाइपर की पहचान

रसेल वाइपर को भारत में कई जगहों पर अलग अलग नामों से जाना जाता है. आम तौर पर इसे दबौया, दगाबाज सांप के नाम से जाना जाता है. यह तीन फीट से चार फीट का होता है. शरीर मोटा होता है और सिर चिपटा होता है. यह सांप गहरे पीले रंग के होते हैं और इसके शरीर पर भूरे रंग के पृष्ठीय धब्बे होते हैं. गर्मियों में यह सांप निशाचर होते हैं जबकि सर्दियों में दिन के समय भी अक्सर देखे जाते हैं. खतरा महसूस होने पर यह सांप प्रेशर कूकर की सिटी की तरह आवाज करता है. जानकार बताते हैं कि यह सांप अक्सर हमला कम करता है, यही कारण है लोग इसके साथ सहज हो जाते हैं लेकिन जब हमला करता है तो बड़ी फुर्ती के साथ करता है. यह सांप आगे से पीछे की ओर भी हमला करने में सक्षम होता है. आम तौर पर रसल वाइपर उंचे जगहों, घने जंगलों में नहीं पाए जाते हैं. झाड़ीदार क्षेत्रों, घास वाले मैदानों में या खुले में पाए जाते हैं. जानकार बताते हैं कि यह सांप भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान में अधिक संख्या में पाया जाता है. जबकि भारत के पंजाब, कर्नाटक, उत्तरी बंगाल में यह ज्यादातर पाया जाता है. स्थानीय जानकारों की मानें तो इन दिनों देश के प्रत्येक हिस्से में इसे देखा जा रहा है. ये सांप अंडज नहीं होते हैं. मादा सांप छः माह तक गर्भधारण करती हैं और एक साथ 25 से 35 बच्चों को जन्म देती हैं. यही कारण है कि जहां भी ये गए वहां बड़ी तेजी से इनकी संख्या बढ़ी है.

इलाके में कैसे पहुंच गए विषधर

जानकार लोगों ने बताया कि वर्ष 2008 में कोसी नदी में आयी भयानक बाढ़ के बाद इस सांप को इक्के दुक्के स्थलों पर देखा जाने लगा. जबकि नवगछिया इलाके में वर्ष 2016 में आयी बाढ़ के बाद रसेल वाइपर की संख्या में बड़ी तेजी से इजाफा हुआ. जानकार स्पष्ट कहते हैं कि गंगा कोसी के बाढ़ में रसेल वाइपर प्रजाति के सांप बहकर यहां आए हैं.

बच कर रहे लोग, यह है काफी खतरनाक

नवगछिया के सर्प मित्र दिलीप कहते हैं कि इस सांप के नजदीक जाने से भी लोगों को बचना चाहिये. आम तौर पर ये आदतन हमलावर नहीं होते हैं लेकिन अगर इन्हें खतरा महसूस हुआ तो ये मानव जीवन के लिये काफी खतरनाक साबित होते हैं. कहीं भी लोगों को यह सांप दिखे तो तुरंत एक्सपर्ट या वन विभाग को सूचित करें और उक्त सांप से दूरी बना कर रखें.

कहते हैं पदाधिकारी

नवगछिया के वन क्षेत्र पदाधिकारी पृथ्वीनाथ सिंह ने कहा कि निश्चित रूप से सामान्यतः देखे जाने वाले देशी प्रजाति की संख्या में कमी आयी है और रसेल वाइपर की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. लेकिन जहां भी यह सांप देखा गया, विभाग के पदाधिकारियों ने सफलतापूर्वक रेस्क्यू किया है. अभ्यारण में किसी भी जीव की संख्या में बढ़ोतरी खतरे वाली बात नहीं है. लेकिन लोगों को सचेत रहना चाहिये और रसेल वाइपर दिखते ही विभाग के पदाधिकारियों को सूचित करना चाहिये.

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