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ऋषव मिश्रा “कृष्णा”, मुख्य संपादक, जीएस न्यूज

नवगछिया – जहांगीरपुर वैसी गांव में एक तरफ कोसी की निर्मम धारा उफान मार रही है तो दूसरी तरफ लोगों के आखों से आंसूओं की धारा फूट रही है. यह गांव इतना बेबस और लाचार कभी न था, मेहनत के बल पर गांव के लोगों ने अपनी तकदीर बनायी थी. लेकिन आज बेबसी और लाचारी का ऐसा आलम है कि लोग हर किसी बाहरी को उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं. कोसी नदी में विलीन होने से पहले लोग अपने अपने घरों से सामानों को तो सुरक्षित निकाल ले रहे हैं लेकिन जिंदगी भर की मेहनत और पाई – पाई इकट्ठा कर बनाये गए आशियाने को नहीं बचा पा रहे हैं.

नदी में पूरा आशियाना विलीन न हो जाय इसके लिए कटाव के मुहाने पर आ चुके घरों के लोग अपने ही घरों को बड़ी मशक्कत से तोड़ रहे हैं. लोगों का कहना है कि जब वे लोग अपने पक्के आशियाने को मलवे के लोभ में तोड़ने के लिए हथौड़ी चलाते हैं तो चोट कलेजे पर लगती है. मंजी बेगम का घर तीन दिन पहले कट चुका है. उसका पूरा परिवार खुले आसमान के नीचे है. वह कह रही है, तीन दिन से घर मे खाना नहीं बना. मंजी को पूछा जाता है, अब वह क्या करेगी, वह रोने लगती है. कुछ जवाब नहीं देती है. वह अब करेगी भी क्या, बेबसी के आंसू बहाने के सिवाय ? मो इस्तेखार कहते हैं कि लगता है गांव मरघट में तब्दील हो गया है.

हर वक्त रोने की आवाजें आती हैं. गांव के लोगों ने पूर्व सरपंच अब्दुल गफ्फार को इतना कमजोर कभी नहीं देखा. वे तो गांव के साहसी लोगों में गिने जाते थे, जब कभी विपरीत परिस्थिति आयी तो अब्दुल गफ्फार ने अपने मजबूत इरादों के बदौलत उसका सामना किया और जीते भी. लेकिन चार दिन से वे रह – रह कर रो रहे हैं. कह रहे हैं कि चार साल से दफ्तरों के चक्कर लगाते लगाते तक गया लेकिन कोई भी रहनुमा नहीं मिला. आज उनकी बस्ती कोसी नदी में जमींदोज होने को है, लेकिन अभी भी साहब बोल रहे हैं कि मेरे हाथ बंधे हैं.

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